लाखों ऐसे लाल


लाखों ऐसे लाल हैं, कुछ नहीं उनके पास ।
ना कहीं घर का घर है, बस धरती आकाश ।।
बस धरती आकाश, गणना दूसरे चरण में ।
यह जाने है कौन, होंगे किसकी शरण में ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तब बदल जायगा साल ।
गिनेंगे एक-एक, हैं लाखों ऐसे लाल ।।


भावार्थः
- कई व्यक्ति परिवार सहित सड़कों के किनारे फ्लाई ओवर के नीचे बड़ी-बड़ी ईमारतों की सीढ़ियांे पर मंदिर-मस्जिद के इर्द-गिर्द खुले स्थानों पर रेलवे प्लेटफार्म इत्यादि ऐसे निःशुल्क स्थानों पर रहते हुए जीवनयापन करते हैं। ये सभी बेघर परिवारों की श्रेणी में आते हैं। इनकी गणना मकान सूचीकरण के साथ नहीं की जावेगी।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि इस प्रकार के लाखों परिवार हैं, जिनके पास रहने के लिए कुछ भी नहीं हैं। नीचे धरती माता का हरा बिछौना और ऊपर नीली छतरी है। जनगणना के दूसरे चरण में ही उनकी गणना होगी, तब तलक कौन जाने वे किसकी शरण में हांेगे। साल भी बदल जाएगा। निर्धारित तिथि को पूरे देश में उनकी गणना एक साथ की जावेगी।