भवन नंबर

घूम-घूम के आप तो, देखो अपना ब्लॉक ।
चार दिषा के ज्ञान से, गली-गली में झांक ।।
गली-गली में झांक, लिखते जाओ नंबर ।।
उत्तर पष्चिम कोण, शुरू करो भवन नंबर।
कह ‘वाणी‘ कविराज, जाना है अंतिम छोर ।
नेऋत्य अग्नि कोण, ईषान उत्तर सब ओर ।ं


भावार्थः- जब नजरी नक्षे में सारे त्रिभुज वर्ग रोड़, मंदिर, मस्जिद, हैंडपम्प अंकित हो चुके हों तब नक्षे में भवन नंबर देने का कार्य प्रारंभ करना चाहिए। प्रत्येक ब्लॉक में भवन नम्बर एक से प्रारम्भ होंगे उत्तर-पष्चिम भाग जिसे वायव्य कोण भी कहते हैं वहीं से भवन नंबर लिखने की शुरूआत करनी चाहिए, फिर नैऋत्य कोण (दक्षिण-पष्चिम), अग्नि कोण (पूर्व-दक्षिण), ईषान कोण (पूर्व-उत्तर) की ओर होते हुए उत्तर दिषा की ओर बढ़ते हुए जहां से प्रारम्भ हुए थे उसी दिषा की ओर पहुंच कर विश्राम लेना चाहिए।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि यह एक सामान्य मार्ग है, जिसमंे प्रगणक अपने ब्लॉक की स्थिति देखकर स्वविवेक से कुछ परिवर्तन भी कर सकते हैं। भवन नंबर का समापन कहीं अन्य दिषा में भी हो सकता किन्तु प्रारम्भ निष्चित रूप से ब्लॉक के उत्तर-पष्चिम भाग से ही करना चाहिए। सर्वाधिक प्रमुख बात बस इतनी सी है कि भवन नंबर एवं जनगणना मकान नम्बर देने के क्रम मेें कोई भवन छूट नहीं जाए।