निशान लगाय तीर का

जो एक-एक भवन को, नंबर देता जाय ।
निशान लगाय तीर का, अगला मार्ग दिखाय ।।
अगला मार्ग दिखाय, चक्कर कितने खाए ।
बुलाय स्वागत द्वार, तो ताला दूर भगाए ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, देखो अपने वतन को ।
क्या-क्या आष लगाय, पूछो प्यारे भवन को ।।


भावार्थः- नजरी नक्षा में जो प्रगणक उत्साह व लगन से कार्य करता है। भवन नंबर एवं जनगणना मकानों को दर्षाता है। भवन नंबर अंकित करते हुए कहां से किस दिषा की ओर मुड़े वह सारा सफर तीर के द्वारा दर्षाया जाना चाहिए। आप कहां से घुम कर कहां पहुंचे। कहीं स्वागतद्वार आमंत्रण देता हुआ प्रतीत हो रहा है तो कहीं किवाड़ पर लगा ताला प्रगणकों को दूर से ही अन्य दिषा की ओर मुड़ जाने का संकेत देता है।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि अपने वतन को देखे वह आपसे एक प्रगणक की हैसियत से क्या-क्या अपेक्षाएं रखता है। एक-एक भवन मेें स्वयं जा-जाकर सभी प्रष्नों को कर्त्ताव्यनिष्ठाता की भावना से पूछते हुए अनुसूची की आषा और अपेक्षाओं पर आप खरे उतरने की पूरी कोशिश करें।