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भांत-भांत परिवार

मकान ऐसे मिल सके, भांत-भांत परिवार ।
दो वहां सामान्य रहे, संस्थागत परिवार ।।
संस्थागत परिवार, में ट्रिपल नाइन लिखना ।
लिखो न मुखिया नाम, केवल पद नाम लिखना।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, जहां सामान्य परिवार ।
क्रमांक बढ़ते जाय, बढ़ते जाओ उस पार ।।


भावार्थः-
आपके ब्लॉक में ऐसी भी स्थितियां कहीं-कहीं मिलेगी जिसमें एक ही भवन में एक से अधिक प्रकार के परिवार रहते हांे। उनमे एक संस्थागत परिवार एवं दो सामान्य परिवार हांे। इस प्रकार से कुल जनगणना मकान तीन हुए। वहां भवन नंबर की पुनरावृति नहीं होगी। उसके नीचे डेष लगाना होगा। जनगणना मकान नंबर अलग-अलग लगेंगे। एक सामान्य परिवार के बाद यदि एक संस्थागत परिवार आ जाता है तो उसके परिवार क्रमांक 999 लिखने होंगे। उसके बाद अन्त में आने वाले सामान्य परिवार को पिछले सामान्य परिवार को दी गई परिवार क्रमांक से एक बढ़ा कर अगला परिवार क्रमांक देना होगा।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि जैसे-जैसे यह क्रम बढ़ता रहेगा आप भी उस पार यानिकी कार्य के उत्तरार्द्ध की ओर बढ़ते जावेंगे।

दो-दो परिवार

भवन मिलंेगे यूं कई, दो-दो होंगे द्वार ।
जनगणना मकान में, हैं दो-दो परिवार ।।
हैं दो-दो परिवार, ऐसे उन्हंे लिखोगे ।
मकान नंबर और, दुबारा नहीं लिखोगे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, परिवार क्रमांक बदले ।
कालम पूरा होय, अब अगले मकान चले ।।


भावार्थः- कहीं-कहीं तो प्रगणक महानुभावों को ऐसा भी देखने को मिल सकता है कि एक भवन है, एक जनगणना मकान है और एक ही जनगणना मकान में दो परिवार रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में भवन नंबर एवं जनगणना मकान नंबर को किसी को भी दुबारा लिखने की आवष्यकता नहीं है। केवल उनके नीचे डेष लगाना ही पर्याप्त होगा, किन्तु परिवार क्रमांक की संख्या अवष्य बदलेगी, क्यांेकि दोनों ही अलग-अलग परिवार हैं।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि इस प्रकार यह कॉलम पूरा करते हुए तुरन्त अगले कालम की ओर बढ़ना चाहिए।

प्रवेश-द्वार

प्रवेश द्वार जहां दिखे, नंबर वहीं लगाय ।
मुख्य द्वार हो भवन का, चूल्हा एक बनाय ।।
चूल्हा एक बनाय, भांत-भांत के पकवान ।
हंसते-हंसते खाय, गरीब हो या धनवान ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तुमे देखना हर बार ।
जहां कहीं भी जाय, कितने हैं प्रवेष द्वार ।।

भावार्थः-
भवन नंबर एवं जनगणना मकान नंबर लिखने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान भवन का एवं जनगणना मकान का मुख्य द्वार ही होता है। यदि उसी भवन में एक से अधिक जनगणना मकान हैं तो प्रत्येक जनगणना मकान के द्वार पर दूर से स्पष्ट दिखाई दे इस आकार में किताब में दर्षाई गई विधि अनुसार जनगणना मकान नंबर लिखने चाहिए।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि एक ही जनगणना मकान एक ही परिवार होने की स्थिति में वहां पर आपको एक ही चूल्हा विभिन्न प्रकार के पकवान बनता हुआ दिखाई देगा। परिवार के सदस्य मार्धुय भाव दर्षाते हुए हंसते-हंसते मिष्ठान्नयुक्त भोजन ग्रहण करते हैं। प्रगणक जहां कहीं भी जाय उन्हंे सर्वप्रथम यही बात बारीकी से देखनी चाहिए कि वहां कितने प्रवेष द्वार हैं ताकि जनगणना मकानों की सही संख्या निष्चित हो सके।

दो परिवार क्रमांक

भवन नम्बर चार के, बदल गये हालात ।
दो परिवार रहे वहां, आते जाते साथ ।।
आते जाते साथ, है शामिल उनका गेट ।
करे बात पे बात, वे घंटो-घंटो बैठ ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, एक जनगणना मकान ।
दो परिवार क्रमांक, तुम लिखो लगाकर ध्यान ।।


भावार्थः-
भवन नम्बर एवं जनगणना मकान नंबर की विभिन्न स्थितियां होती है। इनमें एक स्थिति इस प्रकार की भी हो सकती है। मानाकि कोई भवन नंबर चार है, जिसका एक प्रवेष द्वार है। इसलिए वह एक ही जनगणना मकान हुआ। उस एक जनगणना मकान के अंदर ही दो सामान्य परिवार रहते हैं, वे आते-जाते समय उसी गेट का प्रयोग करते हैं। बड़े प्रेम से रहते हैं। कभी-कभी तो कई घंटो तक बातें करते रहते हैं।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि उस एक ही जनगणना मकान में दो परिवार रहने के कारण दो परिवार क्रमांक लगेंगे। दूसरे वाले परिवार क्रमांक की पंक्ति में भवन संख्या एवं जनजगणना मकान की संख्या नहीं दोहराई जावेगी। उनके नीचे केवल डेष (-) ही लगाया जाएगा।

दिशा-दिशा में द्वार

मकान हमको क्या मिला, दिषा-दिषा में द्वार ।
चार दिषा में रोड है, रहे एक परिवार ।।
रहे एक परिवार, एक जनगणना मकान ।
कहावे मुख्य द्वार,एक भवन नंबर जान ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तीन जब किराएदार ।
मकान मालिक एक, जनगणना मकान चार ।।


भावार्थः-
ब्लॉक में कहीं-कहीं ऐसे भवन भी मिलते हे जिनके हर दिषा में द्वार है, हर दिषा में रोड़ है किन्तु वे सारे कमरे एक ही परिवार के रहने के लिए काम आ रहे है। इसलिए वहां एक जनगणना मकान ही होगा, क्यांेकि उस भवन का मुख्य द्वार एक ही है।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते है कि यदि वहां तीन किरायेदार और आ जाते है, चौथा उसका मालिक पहले से ही वहां रह रहा है। अब चारों परिवार चार अलग-अलग अपने-अपने रास्ते से आते जाते है। ऐसी स्थिति में अब उस भवन के अन्दर जन गणना मकान चार हो गये। एक मकान मालिक का एवं तीन अलग-अलग किरायेदारों के जिनके अपने अपने अलग-अलग प्रवेषद्वार हैं।

अलग प्रवेश द्वार

जनगणना मकान को, सही समझलो आय ।
अलग प्रवेष द्वार हो, उप नंबर तब पाय ।।
उप नंबर तब पाय, लिखो कोष्ठक के अंदर ।
यदि वह आवासीय, मुखिया सहित करो कवर ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, गैर आवासीय मिले ।
कारण लिखना साथ, किरायेदार कहां मिले ।।

भावार्थः- भवन नंबर के साथ-साथ जनगणना मकान नंबर भी दर्षाने होंगे। अलग जनगणना मकान नंबर की पहचान का सबसे प्रमुख चिन्ह यही है कि उसका प्रवेष द्वार अलग होना चाहिए। एक से अधिक जनगणना मकान होने की स्थिति में प्रत्येक जनगणना मकान पर कोष्ठक में नंबर लिखने हांेगे, यदि वह जनगणना मकान आवासीय या आवाससह अन्य उपयोग हो तो मुखिया सहित परिवार की अन्य प्रविष्टियां भी दर्ज करनी होंगी।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि यदि जनगणना मकान गैर आवासीय है तो उसके खाली पड़े रहने का कारण भी दर्षाना होगा यथा किरायेदार की इंतजार में खाली, नवनिर्माण कराने के लिए खाली, मरम्मत के लिए खाली या जीण-षीर्ण अवस्था के कारण खाली है। वहां जैसी भी स्थिति हो खाली रहने का कारण दर्षाना भी आवष्यक है।

भवन नंबर

घूम-घूम के आप तो, देखो अपना ब्लॉक ।
चार दिषा के ज्ञान से, गली-गली में झांक ।।
गली-गली में झांक, लिखते जाओ नंबर ।।
उत्तर पष्चिम कोण, शुरू करो भवन नंबर।
कह ‘वाणी‘ कविराज, जाना है अंतिम छोर ।
नेऋत्य अग्नि कोण, ईषान उत्तर सब ओर ।ं


भावार्थः- जब नजरी नक्षे में सारे त्रिभुज वर्ग रोड़, मंदिर, मस्जिद, हैंडपम्प अंकित हो चुके हों तब नक्षे में भवन नंबर देने का कार्य प्रारंभ करना चाहिए। प्रत्येक ब्लॉक में भवन नम्बर एक से प्रारम्भ होंगे उत्तर-पष्चिम भाग जिसे वायव्य कोण भी कहते हैं वहीं से भवन नंबर लिखने की शुरूआत करनी चाहिए, फिर नैऋत्य कोण (दक्षिण-पष्चिम), अग्नि कोण (पूर्व-दक्षिण), ईषान कोण (पूर्व-उत्तर) की ओर होते हुए उत्तर दिषा की ओर बढ़ते हुए जहां से प्रारम्भ हुए थे उसी दिषा की ओर पहुंच कर विश्राम लेना चाहिए।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि यह एक सामान्य मार्ग है, जिसमंे प्रगणक अपने ब्लॉक की स्थिति देखकर स्वविवेक से कुछ परिवर्तन भी कर सकते हैं। भवन नंबर का समापन कहीं अन्य दिषा में भी हो सकता किन्तु प्रारम्भ निष्चित रूप से ब्लॉक के उत्तर-पष्चिम भाग से ही करना चाहिए। सर्वाधिक प्रमुख बात बस इतनी सी है कि भवन नंबर एवं जनगणना मकान नम्बर देने के क्रम मेें कोई भवन छूट नहीं जाए।

लाखों ऐसे लाल


लाखों ऐसे लाल हैं, कुछ नहीं उनके पास ।
ना कहीं घर का घर है, बस धरती आकाश ।।
बस धरती आकाश, गणना दूसरे चरण में ।
यह जाने है कौन, होंगे किसकी शरण में ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तब बदल जायगा साल ।
गिनेंगे एक-एक, हैं लाखों ऐसे लाल ।।


भावार्थः
- कई व्यक्ति परिवार सहित सड़कों के किनारे फ्लाई ओवर के नीचे बड़ी-बड़ी ईमारतों की सीढ़ियांे पर मंदिर-मस्जिद के इर्द-गिर्द खुले स्थानों पर रेलवे प्लेटफार्म इत्यादि ऐसे निःशुल्क स्थानों पर रहते हुए जीवनयापन करते हैं। ये सभी बेघर परिवारों की श्रेणी में आते हैं। इनकी गणना मकान सूचीकरण के साथ नहीं की जावेगी।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि इस प्रकार के लाखों परिवार हैं, जिनके पास रहने के लिए कुछ भी नहीं हैं। नीचे धरती माता का हरा बिछौना और ऊपर नीली छतरी है। जनगणना के दूसरे चरण में ही उनकी गणना होगी, तब तलक कौन जाने वे किसकी शरण में हांेगे। साल भी बदल जाएगा। निर्धारित तिथि को पूरे देश में उनकी गणना एक साथ की जावेगी।

पंजीयन कागज

संस्थागत परिवार की, बात यही है खास ।
मानेंगे हम तब उसे, पंजीयन कागज पास ।।
पंजीयन कागज पास, देखलो साईन सील ।
नंबर करलो नोट, तुम रखो न कोई ढ़ील ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, साल में एक दो बार ।
करते रहना चेक, जो संस्थागत परिवार ।।


भावार्थः- संसार में कई प्रकार की संस्थाएं चला करती हैं उनकी एक मात्र मुख्य पहचान उनका पंजीयन कागज अथवा रजिस्ट्रेशन लेटर ही होता है। ये उनके पास हो तभी प्रगणक महानुभावों को उसे संस्था समझनी चाहिए। संदेहास्पद स्थिति में वह पंजीयन पत्र, क्रमांक, हस्ताक्षर, मोहर एवं पंजीयन नंबर की भी जांच कर लेनी चाहिए। इसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं रखें।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि आपसे संबंधित संस्था की वर्ष में एक दो बार पंजीयन संबंधी जानकारियां हांसिल करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं हो गया कि अचानक उस संस्था का पंजीयन निरस्त हो गया हो, क्योंकि आज-कल कई संस्थाओं में भांत-भांत के विशाल घोटाले होते रहते हैं।

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संस्थागत परिवार

संबंध कहीं है नहीं, अलग-अलग सब जात ।
खाते खाना साथ में, कर-कर मीठी बात ।।
कर-कर मीठी बात, सब होटल होस्टल जेल।
बोर्डिंग हाउस मेस, सब है कर्मांे के खेल ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वार्डन यदि अलग पकाय ।
संस्थागत के संग, सामान्य परिवार कहाय ।।


भावार्थः- संस्थागत परिवार ऐसे लोगों का समूह होता है, जिनमें परस्पर संबंध होना कोई आवश्यक नहीं हैं, शर्त यह है कि वे सभी एक ही रसोई से बना खाना खाते हों। संस्थागत परिवारों के उदाहरणों में होटल, होस्टल, मेस, जेल, आश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, भिक्षुगृह इत्यादि आते है। कोई व्यक्ति संस्थागत परिवार होटल, मेस का सदस्य है तो कोई जेल का, सब कुछ अपने-अपने कर्म-फल हैं।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि माना कि यदि किसी जेल का वार्डन वहीं अपने परिवार सहित रहता हुआ अपना खाना अलग पकाता हो तो वहां उसके परिवार की गिनती सामान्य परिवार के रूप में अलग से की जावेगी एवं संस्थागत परिवार अलग से गिना जावेगा। संस्थागत परिवार की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शर्त यही है कि उस संस्था का पंजीयन होना अतिआवश्यक है। यदि पंजीयन नहीं है तो उसे फिर सामान्य परिवार के रूप में ही गिना जा सकेगा।

परिवार

चूल्हा जलता एक ही, करते भोजन साथ ।
सभी मिलझुल साथ रहे, चलें मिला कर हाथ ।।
चलें मिला कर हाथ, तब कहलाता परिवार ।
बाधा कैसी आय, सब लड़ने को तैयार ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, दुश्मन को यही खलता ।
खाते हम पकवान, एक ही चूल्हा जलता ।।




भावार्थः- जनगणना विभाग ने परिवारों की तीन श्रेणियां बनाई हैं। प्रथम सामान्य परिवार, द्वितीय संस्थागत परिवार एवं तृतीय बेघर परिवार। सामान्य परिवार उन्हें समझा जावेगा, जिसमें एक ही चूल्हा जलता है और सभी सदस्य उसी चूल्हे से बने भोजन को ग्रहण करते हैं। मिलझुल कर साथ रहते हुए परस्पर सहयोग की भावना से जुडे़ रहते हैं। सामान्य परिवारों में देखा गया है कि कोई छोटी-मोटी बाधा आने पर सभी एक साथ उस विकट परिस्थिति से मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि उनके दुश्मनों को बस यही खलता है क्यों यहां एक ही चूल्हा जलता है और सब जने क्यों एक साथ आए दिन ताजा पकवान खाते हैं। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि समय का तालमेल न जम पाने के कारण वे अपनी सुविधानुसार अलग-अलग समय पर खाना खाते हों किन्तु खाना उन सब का एक ही चूल्हे पर बनता है।

खाली प्लाट

खाली प्लाट था बीच में, पड़ा रहा कुछ साल।
बदल गया भाग्य उसका, अब हो गया निहाल।।
अब हो गया निहाल, कहे मुझको नंबर दो।
इधर-उधर दो तीन, दो बटा एक नंबर दो।।
कह ‘वाणी’ कविराज, है यही अदा निराली।
यही दिशा-निर्देश, मिले बीच प्लाट खाली।।


भावार्थः-कहीं-कहीं संयोगवश ऐसा भी हो सकता है कि मकान सूची अद्यतन करते समय आपको ऐसा कोई प्लाट भी मिल सकता है जिस पर छत पड़ गई हो। ऐसी स्थिति में उसको भवन नंबर देना अनिवार्य हो जाएगा। उसे नए नंबर देने के लिए यही दिशा-निर्देश है कि उसे छोटी संख्या के बटा नंबर देने होंगे।
उदाहरणार्थ - मानाकि भवन नं. 2 व 3 के बीच में ऐसा भवन है जो भवन संख्या डालते समय भूलवश छूट गया था या उस पर छत नहीं पड़ी किन्तु अब छत पड़ गई। आप उसे 2/1 नंबर देंगे।
‘वाणी‘ कविराज कहते हैं कि पूरे ब्लॉक में कहीं भी आपको ऐसा दिखे तो आप उस नए भवन को, अगल-बगल की भवन संख्या को ध्यान रखते हुए छोटी संख्या के बटा नंबर ही दंेगे।

शंक्वाकार सदन

शंक्वाकार सदन सभी को निकल भी कहाय ।
छतें छूती जमीन को, शिखर सा रूप दिखाय ।।
शिखर सा रूप दिखाय होती नहीं दीवारें ।
झूम-झूम परिवार, सब गाते गीत प्यारे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, प्यारा है अपना वतन ।
पेरामिड संदेश, देय शंक्वाकार सदन ।।


भावार्थः-
भवन कई प्रकार के होते हैं जिनमें शंक्वाकार का भी अपना विषिष्ठ स्थान होता है। अंग्रेजी में इन्हंे कोनिकल नाम से भी जाना जाता है। इनकी छतें ज़मीन को छूती हैं। इनका षिखर सा रूप दिखाई देता है। भीतर जाने के लिए प्रवेष द्वार भी होता है। यद्यपि इनमेे कोई चार दीवारी नहीं होती तथापि इन्हंे भवन और जनगणना मकान मानना चाहिए।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि ऐसे हालातों में भी उन मकानों के निवासी प्रसन्नतापूर्वक आत्मानन्द के गीत गाते हैं। ये पेरामिड आकार से मिलते-झुलते भवन अनन्त सुख शान्ति का संदेश देते हैं।

कहे जनगणना मकान

भवन नम्बर लगा वहां, हो छत चार दिवार ।
कोई रहे नहीं रहे, कहीं दिखे परिवार ।।
कहीं दिखे परिवार, कहे जनगणना मकान ।
लिख परिवार क्रमांक, करो ना सोच श्रीमान्।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, बढ़ाओ आत्मविश्वास
चलो थैला उठाय, भवन कौनसा है पास ।।



भावार्थः- किसी भी प्रकार के भवन की एक सर्वमान्य परिभाषा यह स्वीकारी गई है कि किसी निर्माण को भवन नम्बर केवल उसी स्थिति में लगाए जाने चाहिए जहां चार दीवारी बनी हुई हो एवं उस पर छत भी पड़ चुकी हो। भवनों का आवासीय होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। मानाकि एक परिवार रहता है तो ऐसी स्थिति में वह भवन एक और जनगणना मकान भी एक ही कहलाएगा। आवासीय होने की स्थिति में ही उसे परिवार क्रमांक देने होंगें। ‘वाणी‘ कविराज कहते हैं कि निरन्तर कार्य करते रहने से ही आत्मविष्वास शनैः शनैः बढ़ता है। यह जनगणना वाला थैला (बेग) उठा कार्यस्थल की ओर निकल पड़ो, सबसे पास वाले भवन को जो उत्तर-पष्चिम दिषा में है वहीं से भवन नम्बर एवं जनगणना मकान नम्बर देते हुए कार्य का शुभारम्भ कर दीजिए।

जनगणना मकान

बड़े भवन का भाग है, जनगणना मकान ।
अलग वहीं पर द्वार हो, नहीं रहे इंसान ।।
नहीं रहे इंसान, चाहे होय आवासी ।
खाली दिखा मकान, सभी हो चुके प्रवासी ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज देखो तुम ध्यान लगाय ।
गणना के दौरान, कब परिवार लौट आय ।।


भावार्थः- जनगणना मकान किसी भी भवन का वह भाग होता है जिसकी पहचान एक पृथक इकाई के रूप में दिखती हो। उस इकाई का मुख्य प्रवेशद्वार अलग से सड़क की ओर, साझे आहाते, सीढ़ियांे आदि में खुलता हो। किसी जनगणना मकान का उपयोगी बने रहना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। वह आवासीय/गैर आवासीय किसी भी श्रेणी का हो सकता है।
यदि किसी विशाल भवन में कई सारे फ्लेट/विंग/ब्लॉक हैं जो एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न संरचना लिए हुए हैं। उनके प्रवेशद्वार अलग-अलग हैं। किसी सड़क साझी सीढियां अथवा मुख्य द्वार की ओर जाने वाले साझे आहाते में खुलते हों ऐसी परिस्थिति में वे सभी अलग-अलग जनगणना मकान माने जावेंगे। एकाधिक जनगणना मकान मुख्य भवन से पृथक भी हो सकते हैं एवं मुख्य भवन से जुडे़ हुए भी हो सकते हैं। मुख्य शर्त यही है कि उनके प्रवेशद्वार इस प्रकार से अलग-अलग हों कि उसमें रहने वालों की मुख्य द्वार से आने-जाने की कोई मजबूरी न हो।

भवन

उसे भवन तब हम कहंे, बनी चार दीवार ।
छत पड़ी हुई हो वहां, चलता हो व्यापार ।।
चलता हो व्यापार, दुकान निवास कार्यालय ।
पूजा स्थल गोदाम, स्टोर स्कूल औषधालय ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वर्कशाप कारखाना ।
होते कितने रूप, हर भवन में तुम जाना ।।


भावार्थः-
जनगणना विभाग द्वारा किसी निर्माण को भवन की संज्ञा तभी दी जा सकेगी जबकि उस चार दीवारी पर छत पड़ चुकी हो। उस भवन में चाहे व्यापार दुकान सरकारी अर्द्ध सरकारी, निजी कार्यालय चलता हो। पूजा का स्थान गोदाम,स्टोर, स्कूल, औषधालय, वर्कशाप, कारखाना, आदि किसी भी रूप में उस भवन का उपयोग हो रहा हो। वह भवन ही माना जावेगा। ऐसे प्रत्येक निर्माण को भवन नंबर/जनगणना मकान नंबर देने होंगे।

‘वाणी‘ कविराज कहते हैं कि कोई भवन उक्त वर्णित किसी भी प्रकार के उपयोग में लिया जा सकता है। जब प्रगणक एक-एक भवन में जा-जाकर देखंेगे तो उनकी भवन उपयोग संबंधी विविध प्रकार की जानकारियां बढे़गी।

परिसर

निर्माण किया भवन का, बना वह शानदार ।
खुली जगह सब ओर है, पल-पल आय बहार ।।
पल-पल आय बहार, मनवा बहुत हरषावे ।
अपना बंगला छोड़, कहीं पर नहीं सुहावे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, लगता मोटा आफिसर ।
नहीं बनी दीवार, कहलाय, सुन्दर परिसर ।


भावार्थः- भवन निर्माण पूर्ण हुआ है। वह दिखने में बड़ा ही आकर्षक एवं शानदार है। चारों ओर खुली जगह है। हवाओं का क्रोस वेन्टीलेशन आनंददायी है। यह सब कुछ देख मनवा इतना प्रसन्न रहता है कि अपना बंगला छोड़ किसी अन्य के यहां अधिक समय रहना अब सुहाता ही नहीं है।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि ‘परिसर‘ का अर्थ निर्मित भू-भाग एवं उसके चारों ओर छूटी हुई जगह, यदि बहु मंजिला भवन है तो इनसे जुड़ा साझा स्थान परिसर कहलाता है। वहां बाउण्ड्रीवाल अथवा तार की घेराबंदी होना भी आवश्यक नहीं है,अर्थात् परिवार को उपलब्ध कुल भूमि या साझे स्थान को ‘परिसर’ कहा जाएगा।