संबंध कहीं है नहीं, अलग-अलग सब जात ।
खाते खाना साथ में, कर-कर मीठी बात ।।
कर-कर मीठी बात, सब होटल होस्टल जेल।
बोर्डिंग हाउस मेस, सब है कर्मांे के खेल ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वार्डन यदि अलग पकाय ।
संस्थागत के संग, सामान्य परिवार कहाय ।।
खाते खाना साथ में, कर-कर मीठी बात ।।
कर-कर मीठी बात, सब होटल होस्टल जेल।
बोर्डिंग हाउस मेस, सब है कर्मांे के खेल ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वार्डन यदि अलग पकाय ।
संस्थागत के संग, सामान्य परिवार कहाय ।।
भावार्थः- संस्थागत परिवार ऐसे लोगों का समूह होता है, जिनमें परस्पर संबंध होना कोई आवश्यक नहीं हैं, शर्त यह है कि वे सभी एक ही रसोई से बना खाना खाते हों। संस्थागत परिवारों के उदाहरणों में होटल, होस्टल, मेस, जेल, आश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, भिक्षुगृह इत्यादि आते है। कोई व्यक्ति संस्थागत परिवार होटल, मेस का सदस्य है तो कोई जेल का, सब कुछ अपने-अपने कर्म-फल हैं।
‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि माना कि यदि किसी जेल का वार्डन वहीं अपने परिवार सहित रहता हुआ अपना खाना अलग पकाता हो तो वहां उसके परिवार की गिनती सामान्य परिवार के रूप में अलग से की जावेगी एवं संस्थागत परिवार अलग से गिना जावेगा। संस्थागत परिवार की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शर्त यही है कि उस संस्था का पंजीयन होना अतिआवश्यक है। यदि पंजीयन नहीं है तो उसे फिर सामान्य परिवार के रूप में ही गिना जा सकेगा।