संस्थागत परिवार की, बात यही है खास ।
मानेंगे हम तब उसे, पंजीयन कागज पास ।।
पंजीयन कागज पास, देखलो साईन सील ।
नंबर करलो नोट, तुम रखो न कोई ढ़ील ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, साल में एक दो बार ।
करते रहना चेक, जो संस्थागत परिवार ।।
मानेंगे हम तब उसे, पंजीयन कागज पास ।।
पंजीयन कागज पास, देखलो साईन सील ।
नंबर करलो नोट, तुम रखो न कोई ढ़ील ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, साल में एक दो बार ।
करते रहना चेक, जो संस्थागत परिवार ।।
भावार्थः- संसार में कई प्रकार की संस्थाएं चला करती हैं उनकी एक मात्र मुख्य पहचान उनका पंजीयन कागज अथवा रजिस्ट्रेशन लेटर ही होता है। ये उनके पास हो तभी प्रगणक महानुभावों को उसे संस्था समझनी चाहिए। संदेहास्पद स्थिति में वह पंजीयन पत्र, क्रमांक, हस्ताक्षर, मोहर एवं पंजीयन नंबर की भी जांच कर लेनी चाहिए। इसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं रखें।
‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि आपसे संबंधित संस्था की वर्ष में एक दो बार पंजीयन संबंधी जानकारियां हांसिल करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं हो गया कि अचानक उस संस्था का पंजीयन निरस्त हो गया हो, क्योंकि आज-कल कई संस्थाओं में भांत-भांत के विशाल घोटाले होते रहते हैं।