प्रवेश द्वार जहां दिखे, नंबर वहीं लगाय ।
मुख्य द्वार हो भवन का, चूल्हा एक बनाय ।।
चूल्हा एक बनाय, भांत-भांत के पकवान ।
हंसते-हंसते खाय, गरीब हो या धनवान ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तुमे देखना हर बार ।
जहां कहीं भी जाय, कितने हैं प्रवेष द्वार ।।
मुख्य द्वार हो भवन का, चूल्हा एक बनाय ।।
चूल्हा एक बनाय, भांत-भांत के पकवान ।
हंसते-हंसते खाय, गरीब हो या धनवान ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, तुमे देखना हर बार ।
जहां कहीं भी जाय, कितने हैं प्रवेष द्वार ।।
भावार्थः- भवन नंबर एवं जनगणना मकान नंबर लिखने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान भवन का एवं जनगणना मकान का मुख्य द्वार ही होता है। यदि उसी भवन में एक से अधिक जनगणना मकान हैं तो प्रत्येक जनगणना मकान के द्वार पर दूर से स्पष्ट दिखाई दे इस आकार में किताब में दर्षाई गई विधि अनुसार जनगणना मकान नंबर लिखने चाहिए।
‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि एक ही जनगणना मकान एक ही परिवार होने की स्थिति में वहां पर आपको एक ही चूल्हा विभिन्न प्रकार के पकवान बनता हुआ दिखाई देगा। परिवार के सदस्य मार्धुय भाव दर्षाते हुए हंसते-हंसते मिष्ठान्नयुक्त भोजन ग्रहण करते हैं। प्रगणक जहां कहीं भी जाय उन्हंे सर्वप्रथम यही बात बारीकी से देखनी चाहिए कि वहां कितने प्रवेष द्वार हैं ताकि जनगणना मकानों की सही संख्या निष्चित हो सके।