निर्माण किया भवन का, बना वह शानदार ।
खुली जगह सब ओर है, पल-पल आय बहार ।।
पल-पल आय बहार, मनवा बहुत हरषावे ।
अपना बंगला छोड़, कहीं पर नहीं सुहावे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, लगता मोटा आफिसर ।
नहीं बनी दीवार, कहलाय, सुन्दर परिसर ।
खुली जगह सब ओर है, पल-पल आय बहार ।।
पल-पल आय बहार, मनवा बहुत हरषावे ।
अपना बंगला छोड़, कहीं पर नहीं सुहावे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, लगता मोटा आफिसर ।
नहीं बनी दीवार, कहलाय, सुन्दर परिसर ।
भावार्थः- भवन निर्माण पूर्ण हुआ है। वह दिखने में बड़ा ही आकर्षक एवं शानदार है। चारों ओर खुली जगह है। हवाओं का क्रोस वेन्टीलेशन आनंददायी है। यह सब कुछ देख मनवा इतना प्रसन्न रहता है कि अपना बंगला छोड़ किसी अन्य के यहां अधिक समय रहना अब सुहाता ही नहीं है।
‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि ‘परिसर‘ का अर्थ निर्मित भू-भाग एवं उसके चारों ओर छूटी हुई जगह, यदि बहु मंजिला भवन है तो इनसे जुड़ा साझा स्थान परिसर कहलाता है। वहां बाउण्ड्रीवाल अथवा तार की घेराबंदी होना भी आवश्यक नहीं है,अर्थात् परिवार को उपलब्ध कुल भूमि या साझे स्थान को ‘परिसर’ कहा जाएगा।