उसे भवन तब हम कहंे, बनी चार दीवार ।
छत पड़ी हुई हो वहां, चलता हो व्यापार ।।
चलता हो व्यापार, दुकान निवास कार्यालय ।
पूजा स्थल गोदाम, स्टोर स्कूल औषधालय ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वर्कशाप कारखाना ।
होते कितने रूप, हर भवन में तुम जाना ।।
छत पड़ी हुई हो वहां, चलता हो व्यापार ।।
चलता हो व्यापार, दुकान निवास कार्यालय ।
पूजा स्थल गोदाम, स्टोर स्कूल औषधालय ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, वर्कशाप कारखाना ।
होते कितने रूप, हर भवन में तुम जाना ।।
भावार्थः- जनगणना विभाग द्वारा किसी निर्माण को भवन की संज्ञा तभी दी जा सकेगी जबकि उस चार दीवारी पर छत पड़ चुकी हो। उस भवन में चाहे व्यापार दुकान सरकारी अर्द्ध सरकारी, निजी कार्यालय चलता हो। पूजा का स्थान गोदाम,स्टोर, स्कूल, औषधालय, वर्कशाप, कारखाना, आदि किसी भी रूप में उस भवन का उपयोग हो रहा हो। वह भवन ही माना जावेगा। ऐसे प्रत्येक निर्माण को भवन नंबर/जनगणना मकान नंबर देने होंगे।
‘वाणी‘ कविराज कहते हैं कि कोई भवन उक्त वर्णित किसी भी प्रकार के उपयोग में लिया जा सकता है। जब प्रगणक एक-एक भवन में जा-जाकर देखंेगे तो उनकी भवन उपयोग संबंधी विविध प्रकार की जानकारियां बढे़गी।