शंक्वाकार सदन सभी को निकल भी कहाय ।
छतें छूती जमीन को, शिखर सा रूप दिखाय ।।
शिखर सा रूप दिखाय होती नहीं दीवारें ।
झूम-झूम परिवार, सब गाते गीत प्यारे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, प्यारा है अपना वतन ।
पेरामिड संदेश, देय शंक्वाकार सदन ।।
छतें छूती जमीन को, शिखर सा रूप दिखाय ।।
शिखर सा रूप दिखाय होती नहीं दीवारें ।
झूम-झूम परिवार, सब गाते गीत प्यारे ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, प्यारा है अपना वतन ।
पेरामिड संदेश, देय शंक्वाकार सदन ।।
भावार्थः- भवन कई प्रकार के होते हैं जिनमें शंक्वाकार का भी अपना विषिष्ठ स्थान होता है। अंग्रेजी में इन्हंे कोनिकल नाम से भी जाना जाता है। इनकी छतें ज़मीन को छूती हैं। इनका षिखर सा रूप दिखाई देता है। भीतर जाने के लिए प्रवेष द्वार भी होता है। यद्यपि इनमेे कोई चार दीवारी नहीं होती तथापि इन्हंे भवन और जनगणना मकान मानना चाहिए।
‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि ऐसे हालातों में भी उन मकानों के निवासी प्रसन्नतापूर्वक आत्मानन्द के गीत गाते हैं। ये पेरामिड आकार से मिलते-झुलते भवन अनन्त सुख शान्ति का संदेश देते हैं।