कभी खुष कभी गमगीन

इस परिवार के स्वामित्व की स्थितिः
अपना-1/किराए का-2/अन्य-3



जिस मकां में आप रहे, यदि हैं मालिक आप ।
कोड एक यह जान के, लिखा दीजिए आप ।।
लिखा दीजिए आप, कोई ऐसा कह देय ।
आय तारीख एक, हर माह किराया देय ।।
’वाणी’ तब दो कोड, उन सबके होंगे तीन ।
फोकट का आवास , कभी खुष कभी गमगीन ।।


भावार्थः मालिक की मर्जी ही यह तय करती है कि उसकी दुनिया में कौन-कौन षख्स किस-किस के मालिक होंगे । जिस मकान में आप रह रहे हैं यदि आप स्वयं उसके मालिक हैं । पट्ट्ा, रजिस्ट्री, वसीयत, बख्षीस, न्यायालय या नगरपालिका, पंचायत द्वारा दिया गया ऐसा कोई ठोस कागजी प्रमाण है तो आप उस भवन को या जनगणना मकान को अपना दर्षाते हुए कोड एक दर्ज करवा सकंेगे। यदि हर निष्चित तारीख को मासिक किराया देते है तो उनके लिए कोड दो दर्ज करने होंगे।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि जो कोड एक व दो की पात्रता नहीं रखता है तो फिर तुरन्त निसंकोच होकर वहां कोड नम्बर तीन दर्ज करें। यदि कोई व्यक्ति मकान की कीमत का भुगतान आसान किष्तों में अदा कर रहा हो तो तब भी उसे मालिक मानकर कोड एक ही दर्ज करना चाहिए। आवास-अनियमित, झुग्गी बस्ती या अतिक्रमण भूमि पर बनाया गया हो, या भवन निर्माणाधीन होने के कारण वहीं के मजदूर लोग वहां रहते हांेेेे मुक्त आवास हो ऐसी स्थितियों में कोड तीन ही दर्ज करना चाहिए।