नजर ना लग जाय

जहां-जहां तक एरिया, हमको दिया बताय।
नजरी नक्षा रच दिया, गली-गली में जाय।।
गली-गली में जाय, मन्दिर मस्जिद दिखलाय।
कच्चे-पक्के राह, कौन कहां से जल लाय।
कह ‘वाणी’ कविराज, वर्ग कहीं त्रिभुुज बनाय।।
ऐसा मेप बनाय, जिसके नजर ना लग जाय।


भावार्थः-
मकान सूचीकरण व मकानों की गणना के लिए अनुदेष पुस्तिका के पृष्ठ संख्या 63 पर मुद्रित अनुलग्न 5 के अनुसार पर्यवेक्षक की प्रति के अर्न्तगर्त प्रत्येक प्रगणकों को अपनी ओर से किए कार्य के प्रमाणीकरण देने होंगे।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि प्रगणक महोदय पर्यवेक्षक महानुभावों को कह रहे है कि हमें, हमारे ब्लॉक के अन्तर्गत जितना भी क्षैत्र दिया गया था उसका नजरी नक्षा हमने बिल्कुल सही रच दिया। हमने गली- गली में जा-जा कर मन्दिर, मस्जिद, पक्के-कच्चे रास्ते, सभी दर्षनीय स्थल दर्षाए हैं, पानी की टंकी दर्षा कर जल स्त्रोत भी बताए हैं। कहीं वर्ग, कहीं त्रिभुज आवष्यकतानुसार पूर्ण संाकेतिक भाषा का प्रयोग करते हुए सुन्दर नजरी नक्षा बनाया, किन्तु अब केवल एक ही आशंका है, मैडम को कि इस नजरी नक्षे के किसी की नजर ना लग जाए।