अपनी-अपनी किस्मत

कोई बनाय बंगला, कोई महल बनाय ।
कोई कोठी में रहे, अपार्टमेंट रचाय ।।
अपार्टमेंट रचाय, कहीं बने भवन मकान ।
कोई ताने टेंट, कहीं झोपड़ी में षान ।।
’वाणी’ हाउस बोट, कहीं गेेंग मेन हट है ।
कहाय सब आवास, अपनी-अपनी किस्मत है।।



भावार्थः- भवन सब अपनी-अपनी किस्मत के होते हैं। आपने इस जीवन में एवं पूर्व जन्मों में किस-किस प्रकार का पुरुषार्थ किया है। उनमें स्वार्थ एवं परमार्थ का प्रतिषत कितना-कितना था। इन सभी का समग्र फल प्रारब्ध के रुप में प्रत्येक जीवात्मा को मिलता है। प्रारब्ध ही यह निष्चित करता है कि किसको किस प्रकार के भवन में कैसा सुख मिलेगा।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि किसी को बना बनाया बंगला मिल गया तो किसी ने महल बनवाया, कोई आलीषान कोठी बना रहा है तो कोई अपार्टमेण्ट की रचना में लगा हुआ है कहीं स्थितियां इसके विपरित भी है। लाखोें परिवार टेण्ट लगाकर कहीं झुग्गी झोपड़ी में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, कहीं हाउस बोट कहीं गैंगमैन हट। इस प्रकार आवास सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की बस्तियां सभी क्षैत्रों में पाई जाती है।