गूंजे देश विदेश

प्यारी कविताएं रची, कहदी सारी बात।
सब बारम्बार इनको, गाएंगे दिन-रात।।
गाएंगे दिन-रात, मन ही मन हर्षाए।
जनगणना का काम, अब सरलतम बन जाए।।
कह ‘वाणी’ कविराज, गलियां गूंजेगी सारी।
गूंजे देश विदेश, कविताएं प्यारी-प्यारी।।

भावार्थः- महाराणा प्रताप और मीराबाई की पावन नगरी, चित्तौड़गढ़ (राज.) में जन्मे कवि अमृत वाणी द्वारा रचित पुस्तक ‘जनगणना षतक’ में समाहित प्रत्येक कविता अपने आप में एक छोटा सा पाठ है। इन्हीं छोटी-छोटी कविताओं के द्वारा जनगणना कार्य के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को स्पष्ट किया गया है।
इन सरस कविताओं को सामान्य पाठक बार-बार पढ़ेंगे और गाएंगे। प्रगणक और पर्यवेक्षक महानुभाओं मन ही मन अधिकाधिक प्रसन्नता और उत्साह का अनुभव करते हुए जनगणना कार्य को रूचिकर एवं सरलतम जानकर पूर्ण करेंगे।
‘वाणी’ कविराज को यह विष्वास है कि मेरी राष्ट्रीय रचनाएं देष-विदेष में वर्षों तक गूंजती रहेगी।