परिवार

चूल्हा जलता एक ही, करते भोजन साथ ।
सभी मिलझुल साथ रहे, चलें मिला कर हाथ ।।
चलें मिला कर हाथ, तब कहलाता परिवार ।
बाधा कैसी आय, सब लड़ने को तैयार ।।
कह ‘वाणी‘ कविराज, दुश्मन को यही खलता ।
खाते हम पकवान, एक ही चूल्हा जलता ।।




भावार्थः- जनगणना विभाग ने परिवारों की तीन श्रेणियां बनाई हैं। प्रथम सामान्य परिवार, द्वितीय संस्थागत परिवार एवं तृतीय बेघर परिवार। सामान्य परिवार उन्हें समझा जावेगा, जिसमें एक ही चूल्हा जलता है और सभी सदस्य उसी चूल्हे से बने भोजन को ग्रहण करते हैं। मिलझुल कर साथ रहते हुए परस्पर सहयोग की भावना से जुडे़ रहते हैं। सामान्य परिवारों में देखा गया है कि कोई छोटी-मोटी बाधा आने पर सभी एक साथ उस विकट परिस्थिति से मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

‘वाणी‘ कविराज कहना चाहते हैं कि उनके दुश्मनों को बस यही खलता है क्यों यहां एक ही चूल्हा जलता है और सब जने क्यों एक साथ आए दिन ताजा पकवान खाते हैं। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि समय का तालमेल न जम पाने के कारण वे अपनी सुविधानुसार अलग-अलग समय पर खाना खाते हों किन्तु खाना उन सब का एक ही चूल्हे पर बनता है।