दुआ करते

कोई न छूटा हमसे, हम घर-घर जा आय।
एक-एक घर देखके, मन ही मन हरषाय।।
मन ही मन हरषाय, कम हुई बाधा मोटी।
लाखों ऐसे लाल, मिली ना रोजी-रोटी।।
कह ‘वाणी’ कविराज, चल रहा ऐसा कब से ।
समय ये जल्दी जाय, दुआ करते हम रब से।।

भावार्थः- प्रमाणीकरण की श्रृंखला में प्रगणक अपनी ओर से प्रमाण देते हुए पुनः यह निवेदन कर रहे हैं कि मकान सूची एवं परिवार अनुसूची भरने के दौरान ना तो कोई मकान हमसे छूटा, ना कोई व्यक्ति गणना से वंचित रहा। कई दीन-हीन घरों को देख हमारे अन्तःकरण को मात्र इस बात से ही संतोषानुभूति हुई कि हमसे भी कई गुणा ज्यादा ऐसे भी दीन-हीन दुःखी व्यक्ति रहते है जिनके कलेजे के टुकड़ों को दोनो टाईम रोटियों के टुकडे़ भी नसीब नहीं होते हैं।

अपना सारा गम भूल कर ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उन दीन-हीन सभी लोगों के जीवन के ऐसे संकट षीघ्र दूर होएं, उनके लिए आओ हम सभी प्रतिदिन प्रभु से प्रार्थना करें।