अपना हाउस

रुकते हे मुसाफिर जहां, कहते उसको लॉज।
लॉज लॉज में लाज गई, अई ना उनको लाज।।
अई ना उनको लाज, चले होटल, धर्मषाला।
कहीं आश्रम सराय, रेन बसेरा दस माला।।
कह ’वाणी’ कविराज, है बंग्ले गेस्ट हाउस।
सब पैसो के खेल, बेहतर अपना हाउस।।


भावार्थः- जनगणना मकान के वास्तविक उपयोग के अन्तर्गत कोड नं. 5 सभी प्रकार की होटले, लॉज, गेस्ट हाउस के लिए सुनिष्चित किया गया है। कहीं मुसाफिर रुक रहे हैं। होटल, गेस्ट हाउस हैं, जहां आए दिन कई महिलाओं का प्रकृति प्रदत लज्जा रूपी अमूल्य सौन्दर्याभूषण बहुमूल्य से मूल्यवान होता हुआ मूल्यहीन हो जाता है। बेवक्त की चन्द मजबूरियां रफ्ता-रफ्ता शौक में तब्दिल होकर खानदानी दुपट्टेे के नीचे अय्याषी का जामा पहन लेती है। लम्बे अर्से तलक वो जिन्दगी इतनी कमजोर हो जाती है कि वह ना अपनी हकीकत बोल सकती, ना सुन सकती।

’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कोड नं. पांच पाने वालांे में होटलें, धर्मषाला, आश्रम, सराय, रेन बसेरा, बंगला, गेस्ट हाउस, सर्किट हाउस, डाक बंगले ऐसे कई निर्माण आते हैं उक्त सभी भड़कीली व्यवस्थाओं के नाम से सुविधाओं एवं दुविधाओं के सम्मिश्रित हाऊस हैं, मगर सबसे अच्छा व बेहतरीन हाऊस तो वो हाऊस होता है जो हर दृष्टिकोण से अपना हाऊस है।