रेडियो-ट्रांजिस्टर तो, कईं घरों में होय।
दोय बच्चे विज्ञान के, कभी हंसे कब रोय।।
कभी हंसे कब रोय, कभी समाचार सुनाय।
कुछ ऐसे पतिदेव, दहेज में रेडियो लाय।।
कह ‘वाणी’ कविराज, दे रेडियो कोड एक।
नहीं होय दो कोड, प्रष्न यह बड़ा ही नेक।।
दोय बच्चे विज्ञान के, कभी हंसे कब रोय।।
कभी हंसे कब रोय, कभी समाचार सुनाय।
कुछ ऐसे पतिदेव, दहेज में रेडियो लाय।।
कह ‘वाणी’ कविराज, दे रेडियो कोड एक।
नहीं होय दो कोड, प्रष्न यह बड़ा ही नेक।।
भावार्थः- एक जमाना था तब घरों में रेडियो होना भी ऊंची षान समझी जाती थी। समय बदला उसका स्थान टीवी ने ले लिया, किन्तु आज टीवी भी फाईव स्टार होटलों से लेकर झुग्गी झोपडियों तक अपनी सतरंगी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। इसलिए आजकल किसी परिवार की स्टेटस नापने बहुत सारे पुराने पैमाने बहुत कुछ बदल कर अब फोरव्हीलर, बंगले, कोठी, फैक्ट्री, डायबिटिज इत्यादि हो गए हैं, खैर होगाजी हम विषयान्तर नहीं होना चाहते हैं।
प्रगणक को यह पूछ कर क्या आपके परिवार के पास रेडियो अथवा ट्रांजिस्टर अथवा दोनो यदि हों तो कोड 1 दर्ज करें। इनमें से कोई भी उपकरण नहीं होने पर कोड 2 दर्ज करें।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि रेडियो-ट्रांजिस्टर विज्ञान के ये दोनो ऐसे नटखट बच्चे हैं जो कभी भजन कभी गीत सुनाते तब हंसते हुए लगते हैं और स्टेषन नहीं मिलने पर घड़-घड़ की आवाज करते समय रोते हुए बालक की तरह लगते हैं। समय-समय पर प्रतिदिन पूरी दुनिया की खबरें भी सुनाते हैं। कुछ भाग्यषाली पतिदेव को तो उस जमाने में ऐसी षानदार चीजें दहेज के उपहारों के साथ बिन मांगे ही मिल जाया करती थी।