साईकिल

कालम 32: साईकिल:
हां-1/नहीं-2


साईकिल का दौर था, गंगा-जमना जाय ।
पीछे बैठी गोरड़ी ,रास्ता देय दिखाय ।।
रास्ता देय दिखाय ,साईकिल उनके साथ ।
ऐसा देखो हाल, कोड एक हाथों हाथ ।।
’वाणी’ कहता जाय, साईकिल नाहीं पास ।
जहाज मोटर कार, देख-देख करंे विकास ।


भावार्थः-
आज के 40-50 वर्षों पहले देष में जिधर देखो उधर एक मात्र साइकिलों के पहिए ही सफर की दुनिया में मानव जाति को गति और प्रगति के पाठ पढ़ाया करते थे। साइकिलों पर लोग बड़े षोक से अपनी अर्द्धांगिनी को पीछे बिठा-बिठा कर गंगा-यमुना जैसी दुर्गम यात्राएं भी कर लिया करते थे । पीछे बैठी गोरड़ी समय-समय पर साईकिल-यात्रा का और जीवन-यात्रा का मार्ग दिखाती हुई अपने गन्तव्य तक पहुंचने में सहयोग दिया करती।

’वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि उस परिवार में आज भी साईकिल या निषक्त व्यक्यिों के लिए तीन पहिए वाली किसी भी प्रकार की साईकिल यदि उपयोग में लाई जाती हो तो कोड नं0 1 दर्ज करें और किसी भी प्रकार की साईकिल नहीं हो तो कोड नं0 2 दर्ज करें ।