जल जीवन आधार है, जल का इन्तजार।
बादल वे बरसे नहीं, हुई न पैदावार।।
हुई न पैदावार, साल अकाल का कहाया।
बरसे नेणा नीर, दाना दाना तरसाया।।
कह ‘वाणी’ कविराज, इस पार कुछ उस पार हैं।
पलकें जल बरसाय, जल जीवन आधार है।।
बादल वे बरसे नहीं, हुई न पैदावार।।
हुई न पैदावार, साल अकाल का कहाया।
बरसे नेणा नीर, दाना दाना तरसाया।।
कह ‘वाणी’ कविराज, इस पार कुछ उस पार हैं।
पलकें जल बरसाय, जल जीवन आधार है।।
भावार्थः- ‘‘जल ना होता तो यह जग जाता जल।’’ यह पंक्ति 101 प्रतिषत सत्य है। जल ही जीवन का आधार है। निरन्तर जल का अपव्यव करते रहने से जल की कमी विष्वस्तरीय गम्भीर चिन्ता का रूप ले चुकी है। महिलाएं नल व टैंकर का इन्तजार करते करते थक जाती हैं। अकाल के साल में बादल नहीं बरसे जल की चहुं ओर कमी हो गई एवं पैदावार भी पर्याप्त नहीं हुई।
अब जन जीवन दाने-दाने को तरस रहा है, कोटि-कोटि नैनों से नीर बरस रहा है। आंसू बहाते-बहाते कुछ इस पार रह गए तो कुछ उस पार चले गए।
‘वाणी‘ कविराज कहते हैं कि करोेड़ो आंखे पानी बरसा रही किन्तु इस पानी से खेतों में कोई पैदावार नहीं होती है। आओ हम सब मिलकर गहन चिन्तन मनन करें। ऐसी जीवन-शैली अपनाएं जिससे विष्वस्तरीय जल अपव्यय दर को न्यूनतम कर सकें, क्योंकि यही मानव जीवन का मूल आधार है।